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Abhishek Panth

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रात कितनी खामोश हो चली है। अब सर्दी भी हल्की हल्की बढ़ने लगी है। मौसम बदल रहा है। दिल्ली में कितने महीनों की गर्मी और उमस के बाद अब मौसम का मिज़ाज थोड़ा सर्द हुआ है।... उसे बदलती चीजें हमेशा बेचैन करती। किसी भी तरह का बदलाव उसे बहुत असहज कर देता। हालांकि अपने वामपंथी दोस्तों को वो हमेशा जताता रहता की वो "चेंज" का बड़ा हिमायती है। मौसमों का यूं बदलना भी उसको कभी पसंद नहीं आता। बदलते मौसमों की तासीर अक्सर उसको उदास कर देती।
पर अक्टूबर से उसको खासा लगाव है। वह हमेशा कहता की अक्टूबर बीच का महीना है। ठहरने का महीना बीतती हुई गर्मियों और आती हुई सर्दियों के बीच थोड़ी देर सुस्ताने का महीना । अपने बदन को (और मन को भी तो) आने वाली सर्दियों के लिए तैयार करने का महीना। अक्टूबर में एक ठहराव होता है। बदलते हुए मौसमों को कुछ देर ठहर के देखने का नाम ही तो अक्टूबर है। उसे अक्टूबर की रातों में ऐसे भटकना पसंद है। ऐसे ही भटकते हुए उसे अक्सर रातरानी की महक रोक लेती। और उसको लगता की जब तक रातरानी की महक है, अक्टूबर है, वो सुरक्षित है। उसे अक्टूबर की इन हसीन रातों में कुछ नहीं हो सकता...
पर अक्टूबर भी अब खत्म होने को आया है। और उसकी उदासियां भी लौट रही हैं। बढ़ती सर्दी उसको अहसास दिला रही है की वो अब भी तैयार नहीं है। .... ज़्यादा सर्दी हमेशा से उसकी दुश्मन रही है। दिसंबर की सर्दियां उसे कभी सूट नहीं करती। दिल्ली की सर्दियों में वो अकसर बीमार पड़ जाया करता। मौसम की सर्द तासीर पुराने बदन दर्द को ताज़ा कर देती और वो अकसर कहता की सर्दियां उसकी हड्डियों में समा रही है। वैसे बीमार तो वो अक्टूबर की बारिश में भी रहा था। उसका बदन उस ज्वरपीड़ा से अब तक नहीं उबरा है। बढ़ती सर्दी के साथ उसकी पुरानी खांसी भी लौट आई है। वह हमेशा कहता की ऐ खांसी जेनरेशनल है। सर्दियों में खांसते पिता की तस्वीर उसकी बचपन की यादों में बहुत गहरे से बसी हुई है। जब खांसी का ठस्का बहुत असहनीय हो जाता तो उसको लगता की मानो उसके पिता उसमें उतर आए हैं। जैसे वह अपने पिता की जैसा होता जा रहा हो। .....उसे मालूम है कि ऐ खांसी अब सर्दी के आखिर तक बरकरार रहेगी। सारे दवा नुस्खों के बावजूद भी ।
यही सब सोचते हुए वह चल रहा होता है की वो अचानक देखता की समय साढ़े तीन से ऊपर हो चला है। एक सर्द हवा का झोंका उसके चेहरे को छूता है... उसका खांसी का ठस्का तेज़ हो जाता है। वह मुड़ता है और खुद को समझाते हुए की "मौसमों का बदलना जरूरी है, मौसम न बदलें तो जीवन काटना मुश्किल हो जाएगा, ".... अपने रूम को चल देता है।
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