Hindi Poem 'काफ़ी' by Uma Ghosh

Uma Ghosh

काफ़ी
कुछ चीज़े अधूरी ही काफ़ी है और कुछ पूरी भी नहीं
किसी के लिए वो चंद पल ही काफ़ी है और कुछ के लिए पूरी ज़िन्दगी भी नहीं
किसी को ढूंढने से मिले वो और किसी के वो रहे ना वो भी नहीं
क्या है ये काफ़ी ? क्या इन कमियों में सबकी खूबियां काफी नहीं
क्या उन अंधेरों में अपना यूं बेपरवाह होना काफी नहीं
तरीके बदल गए पर इरादे नहीं
वो हकीकत में तब्दील हो गए और बस सपनो में नहीं
असफलताएं बढ़ गई पर निराशा नहीं
लोगो के विश्वास बढ़ गए और समाज का अंधेरा नहीं
लगन और निष्ठा यही है हमारी जीत
जो सदियों से होता आ रहा है सिर्फ वही नहीं है हमारी रीत
क्या ये सब हमारे लिए काफी नहीं ? क्या इन सब में हमारी गलतियों कि कोई माफी नहीं ?
Uma Ghosh
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Posted Mar 24, 2021

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